संपूर्ण रात्रि
करता रहा प्रयास
लड़ता रहा
बहती नदी के
सपनों में ।
सपनों में
करता रहा
फ़ेफ़ड़ों में
स्थिर होते पानी से
गरारे
परन्तु भोर में
जागा बस प्यासा ।
प्रत्यक्ष नहीं
सपनों में पानी
सपनों का कहां होता है पानी !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"