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पानी-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’

संपूर्ण रात्रि
करता रहा प्रयास
लड़ता रहा
बहती नदी के
सपनों में ।


सपनों में
करता रहा
फ़ेफ़ड़ों में
स्थिर होते पानी से
गरारे
परन्तु भोर में
जागा बस प्यासा ।

प्रत्यक्ष नहीं
सपनों में पानी
सपनों का कहां होता है पानी !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"