जरा ठीक से देखो बेटे,
पानी नहीं नहानी में|
तुमको आज नहाना होगा
इक लोटे भर पानी में।
नहीं बचा धरती पर पानी,
बहा व्यर्थ मन मानी में|
खूब मिटाया हमने-तुमने,
पानी यूं नादानी में।
बीस बाल्टी पानी सिर पर,
डाला भरी जवानी में|
पानी को जी भर के फेंका,
बिना विचारे पानी में।
ढेर-ढेर पानी मिलता था,
सबको कौड़ी-कानी में|
अब तो पानी मोल बिक रहा,
पैसा बहता पानी में |
कितना घाटा उठा चुके हैं,
हम अपनी मनमानी में|
नहीं जबलपुर में है पानी,
ना ही अब बड़वानी में।