पहाड़ -सा जीवन हो जब
पानी-सा बन जाएँ हम ।
सीना पहाड़ों का
पानी ही तो चीरता आया है !
पानी होकर ही
मिल सकते हैं हम
दुनिया के तमाम रंगों में,
गुनगुना सकते हैं
उतर-पसरकर
पेड़-पौधों की जड़ों में !
बुझा-बुझा हो जीवन जब
पानी-सा बन जाएँ हम,
बिजली का बाना धरकर
अन्धेरे के पोर-पोर में
धँस जाएँ हम !