मेरे परम आत्मीय
बहकर अनवरत भी
पानी रोता नहीं
तुम्हारी आँखों में छलका
बहुत कुछ कह गया
अधरों पर उतरा
रस बन बह गया
बन गया लाज
सब कुछ सह गया
बना जो उमंग तो
माना नहीं वह
हृदय में तुम्हारे
बना प्यार निर्मल
और वहीं रह गया।
मेरे परम आत्मीय
बहकर अनवरत भी
पानी रोता नहीं
तुम्हारी आँखों में छलका
बहुत कुछ कह गया
अधरों पर उतरा
रस बन बह गया
बन गया लाज
सब कुछ सह गया
बना जो उमंग तो
माना नहीं वह
हृदय में तुम्हारे
बना प्यार निर्मल
और वहीं रह गया।