रात ठंड की
बिस्तर पर
पड़ी रजाइयाँ को
अखाडा बनाता है
मेरा छोटा बेटा॥
पाँच बरस का।
अकसर कहता
'पापा' ढिशुम ढिशुम खेलें,
और उसकी नन्ही मुट्ठियों के
वार से मैं गिर पड़ता हूँ धड़ाम
वह खिल खिलाकर खुश होकर
कहता है पापा हार गए औ पापा हार गए।
तब मुखे
"बेटे ले हारने" का सुख महसूस होता है।
आज मेरा वह बेटा जवान होकर,
ऑफिस से लौटता है फिर
बहू की शिकायत पर मुझे फटकारता है
मुझ पर खीझता है,
तब मैं विवश होकर मौन हो जाता हूँ
अब मैं बेटे से हारने का सुख नहीं,
जीवन से हारने का दुख अनुभूत करता हूँ
ज्यादा सावधान होकर, शब्दों से डरता हूँ
सच तो यह है कि
मैं हर एक झिड़की पर तिल तिल मरता हूँ।
बेटा फिर भी जीत जाता है
समय अपना गीता गाता है
"मुन्ना बड़ा प्यारा
आँखों का दुरारा
कोई कहे चाँद,
कोई आँख का तारा"।