Last modified on 15 अप्रैल 2013, at 13:42

पारदर्शी नील जल में / नामवर सिंह

पारदर्शी नील जल में सिहरते शैवाल
चाँद था, हम थे, हिला तुमने दिया भर ताल
क्या पता था, किन्तु, प्यासे को मिलेंगे आज
दूर ओठों से, दृगों में संपुटित दो नाल ।