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पारा प्रेम का / सरोज सिंह

"पारा" प्रेम का, हाई हो न हो
"प्रेम" पारे सा होना चाहिए
जो गिरकर टूटता है कई टुकड़ों में
जुड़ने में पल नहीं गंवाता
कोई गांठ भी नहीं होती उस जुडाव में
और...उस "पारे"(प्रेम) को
कोई रंगे हाथों पकड़ भी तो नहीं पाता
तभी कहती हूँ...
पारा प्रेम का हाई हो न हो
प्रेम पारे सा होना चाहिए!