।।श्रीहरि।।
( पार्वती-मंगल पृष्ठ 10)
सिव सुमिरे मुनि सात आइ सिर नाइन्हि।
कीन्ह संभु सनमानु जन्म जन्म फल पाइन्हि।75।
सुमिरहिं सकृत तुम्हहिं जन तेइ सुकृती बर।
नाथ जिन्हहि सुधि करिअ तिनहिं सम तेइ हर।76।
सुनि मुनि बिनय महेस परम सुचा पायउ।
कथा प्रसंग मुनीसन्ह सकल सुनायउ।77।
जाहु हिमाचल गेह प्रसंग चलायहु।
जौं मन मान तुम्हार तौ लगन धरायहु।78।
अंरूधती मिलि मनहिं बात चलाइहि।
नारि कुसल इहिं काज काजु बनि आइहि।79।
दुलहिनि उमा ईसु बरू साधक ए मुनि ।
बनिहि अवसि यहु काजु गगन भइ अस धुनि।80।
भयउ अकानि आनंद महेस मुनीसन्ह।
देहिं सुलोचनि सगुन कलस लिएँ सीसन्ह।81।
सिव सो कहेउ दिन ठाउँ बहोरि मिलनु जहँ।
चले मुदित मुनिराज गए गिरिबर पहँ।82।
गिरि गेह ते अति नेहँ आदर पुजि पहुँनाई करी।
घरवात घरनि समेत कन्या आनि सब आगें धरी।।
सुखु पाइ बात चलाइ सुदिन सोधाइ गिरिहि सिखाइ कै।
रिषि सात प्रातहिं चले प्रमुदित ललित लगन लिखाइ कै।10।
(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 10)