Last modified on 21 मार्च 2011, at 13:20

पार्वती-मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 1

।।श्रीहरि।।
    
पार्वती-मंगल

(स्मरणीय गोस्वामी तुलसीदास जी ने देवाधिदेव भगवान शंकर के द्वारा जगदम्बा पार्वती के कन्याणमय पाणिग्रहण का काव्यमय चित्रण किया है। जगदम्बा पार्वतीनक भगवान् शंकर जैसे निरन्तर समाधि में लीन रहनेवाले, परम उदासीन वीतराग शिरोमणि के कान्तरूप में प्राप्त करने के लिये कैसी कठोर साधना की, कैसे -कैसे क्लेश सहे, किस प्रकार उनके आराध्यदेवने उनके प्रेमकी परीक्षा ली और अंत में कैसे उनकी अदम्य निष्ठा की जीत हुयी, इसका हृदयग्राही तथ मनोरम चित्र खींचा है। शिव बरात के वर्णन में गोस्वामीजी ने हास्यरस के मधुर पुट के साथ विवाह एवं विदाई का मार्मिक एवं रोचक वर्णन करके इस छोटे से काव्य का उपसंहार किया है।)
 


।।श्रीहरि।।
  
( पार्वती-मंगल पृष्ठ 1)


श्री बिनइ गुरहिं गुनिगनहि गिरहि गगनाथहि।
 हृदयँ आनि सिय राम धरे धनु भाथहि।1।

गावदँ गौरि गिरीस बिबाह सुहावन।
पाप नसावन पावन मुनि मन भावन।2।

कबित रीति नहिं जानउँ कबि न कहावउँ।
 संकर चरित सुसरित मनहिं अन्हवावउँ।3।

पर अपबाद-बिबाद -बिदूषित बानिहि।
 पावन करौं सो गाइ भवेस भवानिहिं।4।

जय संबत फागुन सुदि पाँचैं गुरू छिनु।
अस्विनि बिरचेउँ मंगल सुनि सुख छिनु छिनु।5।

 गुरू -निधानु हिमवानु धरनिधर धुर धनि।
 मैना तासु घरनि घर त्रिभुवन तिनमनि।6।

कहहु सुकृत केहि भाँति सराहिय तिन्ह कर।
लीन्ह जाइ जग जननि जनमु जिन्ह के घर।7।

मंगल खानि भवनि प्रगट जब ते भइ।
तब ते रिधि-सिधि संपति गिरि गृह नित नइ।8।

नित नव सकल कल्यान मंगल मोदमय मुनि मानहीं।
ब्रह्मादि सुर नर नाग अति अनुराग भाग बखानहीं।।
पितु मातु प्रिय परिवारू हरषहिं निरखि पालहिं लालहीं।
सित पाख बाढ़ति चंद्रिका जनु चंद्रभूषन- भालहीं।1।

(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 1)