Last modified on 21 सितम्बर 2014, at 15:28

पावस / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

लगिते आतप अनल ज्वाल सँ
पसरल सगरो हाहाकार
तरूण- वरूणक अग्निवेश सँ
जीव- अजीव मे अशांतिक ज्वार
मोन विरंजित हृदय सशंकित
वनल सरोवर कलुष मसान
सूखल किसलयक कोमल कांति
धधकि रहल नव लता वितान
नष्ट करब एहि प्रलय भयंकर
प्रकट भेलन्हि अपने देवेश
घन घन घटाक संग आगमन
शीतल पावस बूनक वेश
नव रंग नव धुन नव मुस्कान
घुरल सृष्टि मे नवल जान
पुष्प खिलायलि कांचन उपवन
फूरल भ्रमर केॅ मधुर गान
मातलि सरोवर कलकल सरिता
नूतन पानिक खहखह धारा
आएल कृषक मे दिव्य चेतना
भागल वेदनाक पुरा अंधियारा
पंकज प्रस्फुटित भेल सरोवर
वकः काक चित शांत सोहनगर
भरल घटा मे मोर मजूरक
नाच मधुर वड़ लागय रूचिगर
गोधूलिक पवन वेग मे
चहकि उठल भगजोगिनी
वयः ताप मे उमड़ि गेलि
मिलनक वियोग मे तरूणी
उन्मत्त घटा संग मधुर प्रेम मे
नर-नारी भ‘ गेल विभोर
दुई मासक ई रूचिगर पावस
उमड़ाओल नव सृष्टिक जोर