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पिंजरे में बंद मैना / सुदर्शन रत्नाकर

जब भी खुलता है पर्दा
सामने वाली खिड़की का
दिखता है एक चेहरा
बेचारगी भरा
बड़ी बड़ी तरल आँखें
ताकती हैं मुझे
जिन में तैरते हैं कई प्रश्न
जाने कितने-कितने अस्पष्ट सपने
जिन्हें मैं पढ़ लेती हूँ
बिन देखे मन उसका
वह नन्ही मैना जो पिंजरे में बंद है।