घर गौं मुल्क छुटण की
क्य होंदि पिड़ा उठण की
पड़ा ऊं आंख्याौं म बिती जौं पर
पुछा टीरि क रैबास्यौं बिती जौं पर।
कम्पनसेसन का पैसौंन कुड़ि त चिण्यै जाली
जगा जमीन म खेति भी कमयै जाली
कत्ती लगदु टैम कुड़ा घर बणौण मा
पुछा टीरि क रैबास्यौं बिती जौं पर।
वूं सैरू म धरति अपड़्यौंति न पत्यारू मनख्यौंकु
पाड़ सी हवा पाणी न नातू जिकुड़्यौं कु
छुटी मृग कु चांठू ग्वाड़्याली पिंजड़ौं मा
पड़ा ऊं आंख्याौं म बिती जौं पर
पुछा टीरि क रैबास्यौं बिती जौं पर।
मुल्क छुठि समाज बिछड़्या गैल्या रिस्तादार
टुटिगे माळा खत्यैग्या मोति धार-धार
कनि लगद खर-खरी तीज त्यौहार मा
पड़ा ऊं आंख्याौं म बिती जौं पर
पुछा टीरि क रैबास्यौं बिती जौं पर।
जुगु पुराणी बुबा दादौं कि समळौण छुटिगे
आंख्यौं सामणी धर गौं मुल्क डुबिगे
बिस्थापन कु बिस पिनि जौंन दुन्यां तैं सजौंण मा
पड़ा ऊं आंख्याौं म बिती जौं पर
पुछा टीरि क रैबास्यौं बिती जौं पर।
पुळ डुबीन सड़की थमि जिन्दग्यू धकघ्याट
भिलंगना प्रतापनगर दुरू पड़िगे अबाट
ह्वैग्या तरास भारी धर औण जाण मा
पड़ा ऊं आंख्याौं म बिती जौं पर
पुछा टीरि क रैबास्यौं बिती जौं पर।
दमकली डांडि कांठि रूझला तीसाळा कं?
बांध न बगलि बिकासै गंगा जुग जुगन्त
सुख समृद्धि बडली, हर्स आस जिकुड़्यों मा
पड़ा ऊं आंख्याौं म बिती जौं पर
पुछा टीरि क रैबास्यौं बिती जौं पर।