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पिताजी-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’

कितनी कम थीं
जरूरतें !

फ़टे कपड़ो में भी
जी लेते थे हम
सालों-साल
बिना नहाए
साबुन से !

कितनी आसानी से
बताते हैं पिताजी
बदहाली को
खुशहाली में
बदल कर !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"