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पिता-7 / भास्कर चौधुरी

इन दिनों
जिन्हें मैं याद करता हूँ सबसे ज़्यादा
जिनकी जिक्र के बगै़र मेरी कोई कहानी ख़त्म नहीं होती
चाहे सुनने वाले मेरे पीछे कहते हों
कि यह मैं दुहरा चुका हूँ पहले भी कई बार
फिर भी हो ही जाते हैं पिता उपस्थित
मेरे आँगन में पन्द्रह वर्षीय मीठे नीम के पेड़ की तरह
जिसकी छाया में रोज एक गिलहरी आती है
मुँह नाक साफ़ करती
चावल या गेहूँ के चंद दाने चुगती है

पिता
मुझसे दो सौ किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं
सड़सठ वर्ष के हैं
मेरे बचपन के दिनों के बाद
आज सबसे ज़्यादा अच्छे लगते हैं -
आज जबकि मैं एक पिता हूँ
मेरे एक सात साल की बिटिया है