अपने चारों तरफ पसरे अन्धकार में
टटोल-टटोल कर
अपने जीवनकी परिभाषा खोजते मेरे पिता
कभी तुम्हारी इन्हीं आँखों से
मेरे डगमग पाँवों ने पृथ्वी पर डग भरना
मेरी छोटी अँगुलियों ने चीज़े पहचानना
और नन्हीं आखों ने
दुनिया देखना सीखा था
सपनों में भविष्य देखते
कविता में तलाशा था जीने का अर्थ
तुमने विरासत में दी एक नाव
सात रंगों वाली पतवार
समंदर की लहरें और
एक कलम
इस अटूट विश्वास के साथ
कि जो तुम्हारे साथ घटा
वैसा हमारे साथ कभी नहीं घटेगा
पर पापा तुमनें नहीं सिखाये थे
पीछे से होते हमलों के ज़वाब
आत्मा को गिरवी रखना और
दूसरों का सीढ़ियो की तरह इस्तेमाल
फिर ज़िन्दगी के हर मोर्चे पर हारते
कैसे हो पाते विजयी हम