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पिता और सूर्य-1 / अमृता भारती

यह जगत् कितना छोटा था
और कितना बड़ा भी
मेरे लिए
जब आप थे पापा !

अब यह
फिर उतना ही है
न छोटा न बड़ा
अपनी आपाधापी में
चीज़ें धकेलता हुआ --

आप नहीं हैं पापा
और मुझे
सबकी कुहनियाँ लग रही हैं ।