Last modified on 19 अक्टूबर 2013, at 16:19

पिता और सूर्य-7 / अमृता भारती

स्वतन्त्र हुए देश की तरह थी
आपकी हँसी
और आपका माथा, पापा

उस छोटे से कमरे में
हवा कितनी उन्मुक्त फिरती
और आकाश का
कहीं कोई दिगन्त नहीं था

उस नन्दित नीरवता में से
मैंने उठाई थी
अपनी दीक्षा

और पथ प्रशस्त हो गया था
आपके माथे के नीचे