आज झाड़ते हुए आलमारी
अख़बार के नीचे मिल गई
पिता की वही तस्वीर
कई साल पहले
दूधवाले के हिसाब के वक़्त भी
यह इसी तरह पाई गई थी
माँ की डायरी में
फूल की पँखुरी-सी सुरक्षित
फिर एक रात
जब दादी के दाँतों में हुआ था
भीषण दर्द
तब अन्धेरे में
दवा के लिए निकालते हुए पैसे
यह भी खिंची चली आई थी
सिरहाने से बाहर
या पिछले ही साल
बहन के गौने के समय
जब भरा जा रहा था उसका ब्रीफ़केस
तब भी सन्दूक से निकल आई थी
साड़ियों के साथ अचानक
पिता के यौवन से भरी
यही तस्वीर दिखती रही है सालों से
कोई नहीं जानता
कि पिता के बेफ़िक्र बचपन
और लुटे वर्तमान की तस्वीरें
कहाँ दबी पड़ी हैं
किसके अलबम में
किसकी स्मृति में ...