Last modified on 27 मई 2016, at 03:26

पिया फागुन के जोर-1 / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

पिया फागुन के जोर।
बोहोॅ रङ बैहलोॅ छै पटवासी-मोर
पिया फागुन के जोर।

साँपे रङ ससरै छै देहोॅ पर पछिया
छटपट मन-देह करै गोड़ोॅ के बिछिया
बैदा निरगुणियाँ केॅ हाँक पारै लोर
पिया फागुन के जोर।

लहलह-लह लहकै परासोॅ के जंगल
महुआ के फूलोॅ सें भिड़लोॅ छै दंगल
कुहकै छै कोयल करी छाती कठोर
पिया फागुन के जोर।

जे रङ उधियैलोॅ छै मंजर के इत्तर
गमकै छै मालती पर मालती के लत्तर
महुवे सन महकै मन ई भोरमभोर
पिया फागुन के जोर।

बीये रङ गाछी में फूलोॅ के ढेरी
हाँसै छै सब्भे टा ठारो केॅ घेरी
धूनी रमावोॅ तोंय, छी-छी, अघोर
पिया फागुन के जोर।

-22.2.97