क्या सच्ची है कविता कि आत्मा में आ गया हूं
सूत के सात धागे लपेटे
पीपल के वृक्ष में ज्यों
मां है
पौ फटने से पहले
मुझ में देवता का कोई विग्रह नहीं है
क्या सच्ची है कविता कि आत्मा में आ गया हूं
सूत के सात धागे लपेटे
पीपल के वृक्ष में ज्यों
मां है
पौ फटने से पहले
मुझ में देवता का कोई विग्रह नहीं है