सब ख़त्म
में
कोई कब तक जी सकता है
कब तक
बग़ैर शब्दों के बोलना है एक भाषा में
जो मेरे पीछे पड़ी है
विफल
करती मुझे
बारम्बार
सुन लेगी जिसे
वह ख़ामोशी होगी
मैं नहीं पिता।
सब ख़त्म
में
कोई कब तक जी सकता है
कब तक
बग़ैर शब्दों के बोलना है एक भाषा में
जो मेरे पीछे पड़ी है
विफल
करती मुझे
बारम्बार
सुन लेगी जिसे
वह ख़ामोशी होगी
मैं नहीं पिता।