Last modified on 28 अगस्त 2014, at 16:37

पीठ कोरे पिता-26 / पीयूष दईया

पीठ कोरे पिता देखो। मैं अब मूकमूंछ हूं।
छल-चिह्नों से छूटते हुए

इस जन्म में दीमक लग गयी है अहैतुक में फफूंद। काठ के सिफ़र ढोते मेरे सारे शब्द समाप्ति की मालगाड़ी जैसे हैं। ह्दय में फ़ालिजग्रस्त कलपते खोपड़ी में। अंधेरा जो जड़ों का घर है। क्या उन्हें कभी अपनी केंचुल बदलते देखा जा सकता है कौन जाने।
मेरा कोई पूर्वज नहीं मैं निर्वंश हूं। अकेला एक लाश जैसा। तीन में न तेरह में सुतली की गिरह में। आसमान का सफ़ेद कोढ जो रात में हकलाता-सा चमकता है। टोक की तरह।
टिमदिप टिमदिप। अदेय दाने। आंसू का बाहुल्य।
चूते चूते छिटक गया हो जैसे।

अन्यत्र को आंख देते
जब चुग लिये दाने ऐबदार हों।