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पीड़ा / संतोष श्रीवास्तव

मैंने अपनी पीड़ा
छिपाकर रख ली है
और मुस्कुराती हूँ
दिन की डायरी की तरफ
हाथ बढ़ाती हूँ
होठों पर लगाती हूँ
चमकीली हंसी की परत
पलकों सुरमई, खुशहाल रोशनी
बदन से गुजरते हुए
ओढ लेती हो पूरा दिन
डायरी के पन्नों पर
महसूसती हूँ औरों का दुख
यह भी कि
कौन चिंतित है
मेरी पीड़ा के हित