पीड़ा बनल जनम के थाती।
दाह-धाह के राज भुवन पर,
हँसय छने-छन लपट सुमन पर।
मेघ बिना आकास के अँगना,
मुदा आँख में रितु बरसाती।।
जमले जा हइ परत-परत पर,
जिनगी में दुख-दरद धरे-घर।
दूरदिन में सुनसान डगर पर,
आस बरय दीवा के भाँती।।
ई जग के तऽ रीत परिवरतन,
पतझड़ धरे हे कोंपल नूतन।
बिखर-बिखर के सँभरय जीवन,
बुझ-बुझ जरय जिया के बाती।।