लागै पीड़ रै बिन्यां
जीवण
साव अलूणो
चाहीजै काळजै में
कोई न कोई दरद
जे नहीं आ थै
सूरज
कोनी लिख सकै रात
तारां री कविता
जै नहीं मंडै
काळा बादळ
कोनी रच सकै
गिगनार रामधणख
राखै हरी सिरजण री बेल नै
अपचायो दुख
नही’स गिट ज्यावै
चेतणा री संवेदणा नै
सुख री अदेवळ !