हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
पीतल की बालटी आले ढोवै सै बालू रेत
‘रे बीरा बखतै दिल्ली जाइये लाइये गुलाबी छींट’
‘हे मैं सारे सहर में घूम्या न पाई गुलाबी छींट
मेरा बाबल बखते उठ्या ल्याया गुलाबी छींट
मेरी भावज रोवण लाग्यी ‘म्हारी घर का कर दिया नास’
‘कार्तिक की करी लामणी भादवे का खोदा न्यार
चलती ने ते मिले जवाब’