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पीपल / अर्पिता राठौर

सुनो पीपल!
तुमको लिखने की ज़हमत
मैं नहीं उठा सकती
क्योंकि आज तक कभी भी
चार पंक्तियों से आगे
मैं बढ़ी ही नहीं!