पीरी परी देह छीनी, राजत सनेह भीनी,
कीनी है अनंग अंग-अंग रंग बोरी सी ।
नैन पिचकारी ज्यों चल्यौई करै रैन-दिन,
बगराए बारन फिरत झकझोरी सी ॥
कहाँ लौं बखानों ’घनआनँद’ दुहेली दसा,
फाग मयी भी जान प्यारी वह भोरी सी ।
तिहारे निहारे बिन, प्रानन करत होरा,
विरह अँगारन मगरि हिय होरी सी ॥