हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
पीहर मेरो मालवो
कचरी री जाणू आर्यो सब सूं बड़ो तरबूज
मेरो तो मन माने नाय मुलक तेरो गिदावड़ो
पीहर मेरो मालवो
हंसा आयो मेरे पावुनो हंसा सूं हंस बोलयो
कैसे करो आवणो
हंसा आयो हंस हंस सीढ़ी चढ़ गयो हंस कर पकड़ी मेरी बांह
लखेरी चूड़ो कांच को झड़ गयो तेरो के गयो गंवार
कचेहरा को घर गयो