दलित मनुजता को अपनाओ
बंधु, आज यह युग पुकार हो।
प्रेम-धाम बन जाए धरती
मनुज स्नेह का हो अनुवर्ती
उर उर में भ्रातृत्व भाव का
आज यहॉं अभिनव प्रसार हो।
एक धरा के हम वासी हैं
एक परा के विश्वासी हैं
एक चॉंद-सूरज के नीचे
शास्वत समता का विकास हो।
दलित मनुजता को अपनाओ
बंधु आज यह युग-पुकार हो।
मानवता हो जाए मंडित
दानवता हो जाए खंडित
और पाशविकता पर जग में
कठिन वज्र का अब प्रहार हो।
दलित मनुजता को अपनाओ
बंधु आज यह युग-पुकार हो।