देवा देई पूजि करि, मुक्ति कबहिँ नहि होय।
धरनी प्रभु की भक्ति करि, अगति पाय नहिं कोय॥1॥
अहमक पूजहिँ आगि जल, प्रतिमा पुजहिँ गँवार।
धरनी ऐसोको कहै, ठाकुर बिकै बाजार॥2॥
धरनी मन वच कर्मना, पूजहु आतम-राम
यश बाढै संसार में, स्वर्ग सदा सुखधाम॥3॥
प्रतिमा को देवता कहै, करै आत्मघात।
ते अपराधी जीव सो, धरनिहिँ कैसो भात॥4॥
धरनी भूत पुजेरिा, प्रगट भूत गति जाहिँ।
पत्र परोसहिँ भूताको, बैठि आपुही खाहिँ॥5॥
काया-कम्पुट भीतरे, सारसिला ऊँकार।
चि चन्दन ले पूजिये, धरनी बारंबार॥6॥
देवा देई देवता, सबकी आशा त्यागु।
धरनी मन वच कर्मना, एक रामसों लागु॥7॥