पुतलियों में कौन?
अस्थिर हो, कि पलकें नाचती हैं!
विन्ध्य-शिखरों से
तरल सन्देश मीठे
बाँटता है कौन
इस ढालू हृदय पर?
कौन पतनोन्मुख हुआ
दौड़ा मिलन को?
कौन द्रुत-गति निज-
पराजय की विजय पर?
पत्र के प्रतिबिम्ब, धारों पर
विकल छवि बाँचती है,
पुतलियों में कौन?
अस्थिर हो, कि पलकें नाचती हैं!
बिना गूँथे, कौन
मुक्ताहार बन कर,
सिंधु के घर जा
रहा, पहुँचा रहा है?
कौन अंधा, अल्प
का सौंदर्य ढोता,
पूर्ण पर अस्तित्व
खोने जा रहा है?
कौन तरणी इस पतन का
वेग जी से जाँचती है?
पुतलियों में कौन?
अस्थिर हो, कि पलकें नाचती हैं!
धूलि में भी प्राण हैं
जल-दान तो कर,
धूलि में अभिमान है
उट्ठे हरे सर,
धूलि में रज-दान है
फल चख मधुर तर,
धूलि में भगवान है
फिरता घरों घर,
धूलि में ठहरे बिना, यह
कौन-सा पथ नापती है
पुतलियों में कौन?
अस्थिर हो, कि पलकें नाचती हैं!