Last modified on 2 जून 2013, at 22:39

पुरस्कार भेटि गेला पर / सोमदेव

हमर नोकरी बरू रहल हो छोट। पुरस्कार भेटि गेला पर
हम कहए लागी जे हम रही फ्रिलान्सर !
मटरगस्ती करी ससुरक पाइ पर। आ परिचय दी अपन
मसूरीक ‘प्रिन्स’ फिलॉस्फर!!
गुरूवर्गक चोला बदलि लेलाक उपरान्त कहए लागी जे
हमहीं करैत रही हुनक पाण्डुलिपिक शोधन !!!
एहि तीनूमेसँ एक्कोटा बूड़िक बुद्धि प्रेत नहि अछि हमरा उप्पर
हमरा लेखें नोकरी जतबा छोट, सेवा ततबा पैघ।
उपरका कुर्सीसँ बेसी जनसम्पर्कमे रहैछ चपरासीक टेेबुल। ओ बुझैछ
साहेबोक बात। मेमसाहेबोक बात। आ हुनकर संग राजगद्दियोक बात
बहीखाता, लेनदेनक बक्सा, झण्डा-राइफल, सब्सीडी कल्याणी
विधवा पेंशन, अनुग्रह दान, गेटसँ पेट धरि, माटिसँ मेट धरि
ओ सभटा बुझैछ...जकरा बूझियो क’ अण्ठा देबाक छैक कुर्सीकें......
तैं रचनाकार लेल
टेबुले होइछ कुर्सीसँ पैघ। किऐक त’
कुर्सी पर खाली बैसल जा सकैछ। टेबुले पर लीखल जा सकैछ
बैसलो जा सकैछ। मुदा सूतल नहि जा सकैछ
जागल रहइए पड़तैक जकरा लग खाली टेबुले टा छैक
छोटकी टेबुल मारियो-पीटमे होइछ तेज साहेबक टेबुलसँ!!
हमरा लेखें ‘प्रिन्स’ माने मतदाता रूप गदहाक डेम !!
हमरा लेखें साहित्यमे सम्मानसँ बेसी साधनाक आनदंक महत्व। जे
अन्तर्सम्बद्ध रहैछ कर्मयोग, ज्ञानयोग आ’ भक्तियोगसँ !
बुझना जाइछ फकीरीक संयोगसँ!!