रोटी की ज़रूरत ने
हुनरमन्दों के काट दिए हाथ
उनकी आँखों में लिखी मजबूरियाँ
बसी हैं इनसानी बस्तियाँ
रेल की पटरियों के आस-पास
एन०जी०ओ० के बोर्ड संकेत देते है
मेहरबान अमीरों के पास
इनके लिए है जूठन, उतरन कुछ रूपए
यही पैतृक सम्पत्ति है
यही छोड़ कर जाना है तुम्हे बच्चों के लिए
तुम्हारे लिए गढ़ी गई हैं कई परिभाषाएँ
देख कर ही तय होती है मज़दूरी
वो ख़ुश होते है झुके हुए सरों से
इनकी व्याख्या करते हैं कैमरे के फ़्लैश
और पुरस्कृत होते हैं चित्र।