कहाँ कुछ बदला है यहाँ
उस नमरूद से लेकर आज तक
जो ख़ुद को ख़ुदा कहता था और
जिसकी ख़ुदाई में ख़ुद का नाम लेना तक मुश्किल
वही जो प्रजा को दुश्मन पड़ोसी का भय दिखाते थे
और उसकी विवशता पर ही उनके शासन की नींव थी
कोलोसियम में रेत पर गिरी रक्त की बूँदें चुग कर
जीवित रहती थी खून पीने वाली चिड़िया
शाहजहाँ की आँखें तृप्त करने के लिए
बरसों खेतों में सोना उगाते थे किसान
खूफू के पिरामिड के लिए चट्टानें ढोते हुए
जाने कितने मजदूर बह जाते थे नील की धाराओं में
(कोलोसियम 70-80 ईसवी में निर्मित, रोम के एम्फी थियेटर थे जिनका आकार वर्तमान स्टेडियम की तरह होता था l कोलोसियम में रोम के सम्राट दासों को दासों से अथवा पशुओं से अपने मनोरंजन के लिए लड़वाते थे l कहा जाता है कि इस खूनी खेल के प्रदर्शनों में 5 लाख पशु और दस लाख मनुष्य मारे गए। रेत पर खून पीने वाली इस चिड़िया का ज़िक्र हावर्ड फास्ट की किताब ' आदिविद्रोही ' में हैं जो इन ग्लेडिएटर्स के नेता विद्रोही स्पार्टकस की जीवनी है)
( ताजमहल के निर्माण हेतु धन जुटाने के लिए किसानो को खेतों में अतिरिक्त श्रम करना पड़ा था )
( प्राचीन मिस्त्र में 2560 ईसापूर्व में मिस्त्र के शासक फराउन ख़ुफु द्वारा 150 मीटर ऊँचे गिज़ा के ग्रेट पिरामिड का निर्माण करवाया गया। इसे बनाने में हजारों मजदूरों ने 23 साल तक श्रम किया। इसके लिए 23 लाख शिलाखंडों का इस्तेमाल किया गया जिनमे सबसे कम वज़न का शिलाखंड ढाई टन का था। इन्हें दूर दूर से लकड़ी के लठ्ठों पर लादकर नील नदी के मार्ग से लाया जाता था। फराओं के सैनिक मजदूरों को हांक कर लाते थे उन पर कोड़े बरसाए जाते थे और मरते दम तक काम लिया जाता था। इसके अलावा जाने कितने मजदूर इन वज़नी चट्टानों को ऊपर चढ़ाते हुए इनके तले दबकर मर जाते थे या नदी से उतारते हुए नदी में बह जाते थे। इन मजदूरों के श्रम से बना खुफू का यह पिरामिड विश्व के सात अजूबों में शामिल हैl )
सन्निपात के ज्वर में बड़बड़ाता था सिकंदर का प्रेत
उसकी तलवार के नीचे विश्वविजय की गोर्डियन गाँठ थी
अपने वंशजों से अपेक्षाएँ थीं उसकी अधूरी इच्छाओं में
वहीं अपने रक्त की शुद्धता और श्रेष्ठत्व में मदमस्त
हिटलर की नाक पर बैठती थी मक्खी
और गैस चेम्बर में ठूँस दी जाती थी पूरी की पूरी प्रजाति
(सिकंदर के बारे में बहुत सी कहानियां यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क ने लिखी हैं। प्राचीन फ्रीजिया, {अनातोलिया का पश्चिम मध्य, वर्तमान टर्की जहाँ का राजा मीदास प्रसिद्ध है } की राजधानी गोर्डियन नगर में एक रथ पर रस्सी की एक बहुत उलझी हुई गांठ बंधी थी। ऐसा माना जाता था कि जो उसे खोल देगा वह एशिया पर राज करेगा। बहुतों ने उसे खोलने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं रहे। फिर सिकंदर ने भी उसे खोलने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहने पर अंत में तलवार के एक झटके से उसे काट डाला।यूरोपीय भाषा में इसीलिए किसी गुत्थी को बलपूर्वक या अन्य तरीके से हल करने को ‘गोर्डीयन गांठ काटना’ कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भारत से लौटते हुए सिकंदर को सन्निपात का तेज़ ज्वर हो गया था जिस वज़ह से उसकी मौत हो गई।)
रात का अंतिम पहर है यह
ख़ामोशी मौत से बढ़कर भी कुछ और
अपनी धड़कन से भी ज़्यादा साफ़ आवाज़ में
सुन रहे हैं पुरातत्ववेत्ता
उर की कब्र में ज़िन्दा दफ़्न किए सेवकों की सिसकियाँ
गीज़ा के पठार में हवा के तेज़ झोंकों से उड़ती है रेत
काली उदासी में सफ़ेद सी चमकती है
बोझ से टूटे हुए जिस्म में कूल्हे की एक हड्डी
फिर नज़र आती है कोई कशेरुका
धीरे धीरे मजदूर का टूटा हुआ हाथ निकल आता है
(निम्नलिखित पंक्तियों में समुद्र के भीतर पुरातत्ववेत्ताओं के कार्य का ज़िक्र है )
सिर्फ़ रेत और हवा के बीच नहीं उपस्थित होता समय
समुद्र तल में जहाँ रेत की परत के नीचे
कल्पना तक असंभव जीवन की
शैवाल चट्टान सीप घोंघों और मछलियों के बीच
चमकता है अचानक एक विलुप्त सभ्यता का मोती
पीठ पर ऑक्सीजन सिलेण्डर और देह पर अजीब
गोताखोरी की पोशाक पहने पुरातत्ववेत्ता
कछुओं से गुम हुए जीवन का पता पूछते हैं
मछलियों की आँख से आँख मिलाती है
उनके कैमरे की आँख
उसमें एक जाल की दहशत आती है नज़र
सपनों का महल झिलमिलाता है नारियल के कोटर में
झोपड़ी की बगल में खुशियों की राह मचलती है
शायद यही है वह रास्ता कि जिस पर चलकर
हज़ारों- हज़ार साल पहले
अफ्रीका से आई थी हमारी आदिमाता
और चट्टानों के करवट बदलने से जो रास्ता
अपना रास्ता बदलकर समुद्र में चला गया था
यहीं कहीं था जीवन की भाफ से भरा वह द्वीप
जो समुद्र की सलामती के लिए
प्रार्थनायें करते हुए
खुद डूब गया था अपने अभिशाप में
भीगा मन लिए लौटते हैं पुरातत्ववेत्ता इस शुष्क दुनिया में
समुद्र तल में डूबे हुए किसी जहाज के डेक पर
ठहरे हुए पानी में लहराती है
आलिंगनबद्ध प्रेमी युगल की परछाईं
और ज़ंग लगे पुराने संदूक से
मोहब्बत में भीगी एक तस्वीर निकल आती है
(पुरातात्विक स्थलों की खोज के लिए हवाई सर्वेक्षण भी किया जाता है, इसे एरोग्राफी कहते हैं।जिन जंगलों में ज़मीन के नीचे बस्ती होती है उन जंगलों के पेड़ों के पत्ते गहरी जड़ों वाले पेड़ों के पत्तों की तरह स्वस्थ्य नहीं होते हैं और ऊपर से देखने पर थोड़े पीले से दिखाई देते हैं जिससे पुरातत्ववेत्ता उनके नीचे किसी बस्ती के दबे होने का अनुमान लगाते हैं।इसी प्रक्रिया के इस्तेमाल से द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हवाई सैनिकों ने इज़राइल और फ़िलीस्तीन के पास प्राचीन जेरोम शहर की खोज की थी।)
समुद्र से निकलते हैं वे आकाश - पक्षी की तरह
उड़ते हैं हवाओं में लोहे के पंख लिए
जैसे उड़े थे विश्वयुद्ध में हवाई-जहाज़ आसमान में
जहाँ से बच्चों के खिलौनों की तरह नज़र आती थीं बस्तियाँ
और एक टूटा हुआ खिलौना ढूँढ निकाला था सैनिकों ने
इज़राइल और फ़िलीस्तीन के पास जेरोम की शक्ल में
जंगल नज़र आते हैं आसमान से हरे और घनेरे
हरियाली में उतरती है उनकी नज़र
फिर जड़ों तक पहुँचती है
और समा जाती है पृथ्वी की गहराइयों में
वहीं अटक जाती है उन पेड़ों पर
जिनके पत्ते इस कदर पीले
जैसे बीमार हों किसी जिगर की बीमारी से
और मयस्सर नहीं उन्हें सही सही ख़ुराक
हाँ यही तो है बायस
कि इनके ठीक नीचे बसी है एक उजड़ी हुई बस्ती
जो अपनी ख़त्म होती साँसों में भेज रही है संदेश
जड़ों से तनों में और तनों से शाख़ पर पत्तों में
जो उसके भेजे हुए पोस्टकार्ड की तरह पीले हैं
आकाश में मंडराते फ़रिश्ते नहीं हैं पुरातत्ववेत्ता
जो उन ख़तों में लिखे दुख नहीं पढ़ सकें
ज़मीन पर उतरते हैं वे जैसे यथार्थ में उतरते हैं
फिर फिर चूमते हैं ख़तों को और पढ़ते हैं उन्हें
लौटा लाते हैं एक मरती हुई सभ्यता की बची हुई साँसें
जल थल और आकाश सबकी गवाही में दर्ज हैं
दुनिया के जीवन और मृत्यु के बयान
हर जगह देवता उपस्थित
मनुष्यों से अधिक तादाद में
जन्नत से निकाले गए आदम ने तामीर कर ली है अपनी जन्नत
इधर आकाश से आनेवाले मनुष्यों और
ज़मीन से निकले पत्थरों पर सिंदूर पोतकर
उन्हें देवता बनाए जाने का अभियान चरम पर है
इसी बहाने हड़पी जा रहीं ज़मीनें
हासिल किए जा रहे खुदाई के लाइसेंस
सोने से भरे संदूकों और हीरों की लालच में
अपने ज़मीर के अवैध उत्खनन में लिप्त है आदमी
पुरातात्विक धरोहर घोषित किए जाने के बावज़ूद
बेख़ौफ़ चल रहा दूध दही घी से प्रतिमाओं का अभिषेक
पत्थरों में पल रहा नासूर कि जैसे आस्थाओं में
शैलचित्रों में प्रेमियों और पर्यटकों के नाम इतने बदसूरत
कि जैसे यही एक जगह बची हो अमर होने की
संस्कृति के दायरे में श्रद्धा के अनाधिकृत प्रवेश पर
सख़्त मुमानियत की कोई तख्ती नहीं
क्रिया प्रतिक्रिया की भूल -भुलैया में भटके कुछ पुरातत्ववेत्ता
जिनकी स्मृतियों में आग बाँहों में हवाएँ
झमाझम बारिश आँखों में और माथे पर चमकता सूरज
असमंजस में देवों के मूल से जुड़े तथ्य जानकर
अचंभित वे गढ़े हुए शिल्प में छुपे कथ्य जानकर
आश्चर्य यह नहीं कि देख रहे हैं वे वही
जो दिखाया जा रहा उन्हें समझ की दूरबीन से
आश्चर्य यह कि वे इसे मायालोक समझ रहे
ग़नीमत यह कि सभी पर लागू नहीं यह मुहावरा
वे जो समय के प्रतिनिधि और जिन पर
भविष्य का भरोसा है एक अच्छे दोस्त की तरह
बचा सकते हैं जो अपनी ज़िद से इस जीवन की साँसें
बढ़ रहे अपनी गति में निरंतर दुर्गम राहों पर
(पुरातत्ववेत्ता जिन टीलों पर खुदाई करते हैं उनमें अलग अलग परतों में विभिन्न सभ्यताओं के अवशेष होते हैं बारिश होने की स्थिति में यदि भूस्खलन से टीला ढह जाता है तो यह अवशेष गड्डमड्ड हो जाते हैं और उन्हें ठीक ठीक कालक्रम में रखना मुश्किल हो जाता है।)
हर आराध्य की प्राचीनता उनके अभिज्ञान में
और मनुष्य की जिज्ञासा से भरे कुछ सवाल
पुस्तकें और परम्पराएँ अन्तिम उत्तर नहीं है यहाँ
कि प्रक्षेपित शब्दों का शोर बहुत है कानों में
भटकने की संभावना है जिनकी ख़ुराफ़ात में
और यात्रियों के पिटारों में गप्पों का खजाना
किस पर रखें हाथ कि वह भरोसे के क़ाबिल हो
किसे कहें ठीक-ठीक समकालीन
कि वह देशकाल के सभी स्त्रोतों में नज़र आता हो
यहाँ एक ही रात की मूसलाधार बारिश में ढह जाता है टीला
इल्तूतमिश का टंका पहुँच जाता है
वीणाधारी समुद्रगुप्त की जेब में
अपनी विकरालता में उफनती है नदी इधर
और ह्युएनसांग के झोले से टपकी सुपारी
उछलकर पहुँच जाती है जहाँगीर के पानदान में
बहुत मुश्किल है उनके लिए
समय की बिसात पर ठीक - ठीक जगह मोहरों को रखना
पड़ावों की सही पहचान करना इतिहास की यात्रा में
कि रेल की पटरी की तरह साथ चलते हैं आस्था और ज्ञान
जो किसी बिंदु पर मिलते नज़र नहीं आते
जहाँ मिलते वहीं से निकल आता एक तीसरा रास्ता
जिसे मुख्य राह होने का दंभ है
( यहाँ उन अलग अलग पंथ और सम्प्रदायों का उल्लेख है जो अपने आप को अन्य पंथों की तुलना में श्रेष्ठ समझते हैं।पारलौकिक सुख की प्राप्ति के लिए हर पंथ के अलग अलग सिद्धांत हैं।)
कमाल है इस दुनिया के बारे में इस कदर चुप्पी
कि हम रहते हैं और हमें ख़बर ही नहीं इसकी
और जो दुनिया देखी नहीं कभी किसीने
उसके लिए तक़रीरें प्रवचन और प्रार्थना सभाएँ
जिस लोक की चाहत में उनके सहजीवी मनुष्य
नदियों में प्रवाहित करते अस्थियाँ
और पुरातत्ववेत्ता खोजते उनमें भूख का आतंक
आश्चर्य कि उनमें हरी मिर्ची और सूखी रोटी की गंध
कुछ रेशे सड़े हुए माँस के और ज़हरीले पौधों की जड़ें
दीमकों के जीवाश्म जबड़ों पर चिपकी मिट्टी में
उनकी खोज के दायरे में यह चमत्कार या रहस्य
कि अभक्ष्य भी कैसे बना रहा
ग़रीबों में जीने की ताकत
कैसे बचा रहा मनुष्य हिमयुग की भयानक सर्दी में
कि उसके पास कुछ नहीं था अलावा आग के
वह जो जंगल की आग के समानांतर
जल रही थी भीतर उसकी जिजीविषा में
अब भी दिखाई देती है वह आग उन हड्डियों में
और पुरातत्ववेताओं की आँखों में भी भूले बिसरे
अनंत है आकाश जन्म- मृत्यु की बहस का
जहाँ मोक्ष की चीलों के साथ मंडराते हैं पाप- पुण्य के कौवे
जिनमें प्रवेश कर आत्माएँ उड़ातीं पितृपक्ष में दावतें
वहीं पुरातत्ववेत्ता खोजते हड्डी और कोयले में रेडियोधर्मिता
मरने के बाद भी वह उपस्थित रहती हर सजीव में
मनुष्यों में पेड़ों में पशुओं और पक्षियों में
और उसके लिए आत्मा का होना न होना बराबर
वक़्त यहाँ भी बुज़ुर्ग उपदेशक की भूमिका में
गुज़रे वक़्त की हर चीज़ को उम्र से बड़ा बताता बेवज़ह
कि उसे पता नहीं रेडियो कार्बन डेटिंग से गिनी जा रही
उसके माथे पर पड़ी झुर्रियाँ
वृक्ष पर लिपटे धागों से नहीं वृक्ष - वलयों से
आँकी जा रही पूजे जाने वाले पेड़ों की उम्र
और उसके तने में छेद कर
हासिल किया जा रहा मौसम का इतिहास
(कार्बन -14 विधि यह वस्तुओं के काल निर्धारण की एक विधि है lपुरातत्व विज्ञान में जंतुओं और पौधों के अवशेषों के आधार पर उनके जीवन काल और समय चक्र का निर्धारण किया जाता है। सभी सजीव वस्तुओं में रेडियोधर्मी कार्बन होता है जो वातावरण से प्राप्त होता है इसे कार्बन -14 कहते हैं। मृत्यु के बाद जीव इसे प्राप्त नहीं करता। इसकी एक निर्धारित मात्रा का नमूना लगभग 5700 वर्षों बाद आधा हो जाता है lयह रेडियो धर्मिता में क्षय के कारण होता है। जमीन में दबी हुई वस्तुओं की आयु भी इस विधि से ज्ञात की जा सकती है। 1949 में शिकागो विश्व विद्यालय के विलियार्ड लिबी और उनके साथियों ने इसके द्वारा लकड़ी की उम्र पता की जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। 2004 में स्वीडन में दस हजार साल पुराना देवदार का पेड़ मिला है उसकी आयु भी कार्बन -14 विधि से तय की गई है। इसके अलावा भी वस्तुओं की आयु जानने की अनेक वैज्ञानिक विधियां विकसित की जा चुकी हैं। वृक्ष के तने में बनाने वाले वृक्ष वलयों के आधार पर पेड़ की उम्र जानने की विधि Dendrochronology कहलाती है lहड्डियों के ढांचे के आधार पर कंप्यूटर की मदद से अब मनुष्य की आकृति और उसके चेहरे की बनावट जानना भी संभव हो चुका है। किसी वस्तु पर धूप अंतिम बार कब पड़ी थी इसे भी लेसर किरणों के माध्यम से जाना जा सकता है l प्लास्टीसिन मिटटी की तरह की एक वस्तु होती है जिससे चेहरे का आकार गढ़ा जा सकता है, इससे मास्क भी बनाये जाते हैं। )
इन दिनों कम्प्यूटर भी है उनका मददगार
और कपाल पर रख रहे वे माँसपेशियाँ स्क्रीन में
गाल का एक गड्ढा उभरता है प्लास्टिसिन में
होंठों पर खिलती है एक मुस्कुराहट चिरपरिचित
अपने समस्त भावों में प्रकट होता है
अतीत में गुम हुए मनुष्य का एक चेहरा
नाम दे रहे जिसे वे किसी नस्ल का
कि इस दुनिया में प्रवेश के लिए पहचान ज़रूरी है
दस्तावेज़ों की रोशनाई में पढ़ रहे वे उनकी उम्र
धरा की चुम्बकीय ताकत से कर रहे काल गणना
छुआ था जब उसे रश्मियों ने आखरी बार
कुछ आँच बाकी रह गई थी सतह पर
कि लेसर किरणें पहचानती हैं उसे वह कितनी पुरानी है
और फोरेंसिक विज्ञान की नई तकनीक से सुसज्जित
हर डी एन ए यहाँ उम्र के भेद खोलता है
मजाल कि सच के मकान में झूठ दबे पांव घुस आए
फिर भी दुनिया में इतनी मक्कारियाँ कि ओफ्फोह
चाबी बनाने का हुनर है यहाँ जिस इल्म से
हिकमतें ताला तोड़ने की भी उसी तरह
जो हथियार इनके पास वही उनके हाथ में
और किताबें भी वही जो इन्होंने खोजी थीं
मगर होशियार हैं वे और सावधान भी सदा
गुम इतने नहीं अपने आप में कि न जान सके चालाकियाँ
कि साँप के ज़हर का तोड़ भी है साँप का ज़हर
ग़नीमत कि धरती उनके साथ है
स्वर्ग उनके साथ हो न हो आकाश उनके साथ है
आग उनकी दोस्त पक्की और पानी भी
हवाएँ साथ देतीं उनका हर हमेशा
सूर्य सदा करता उन पर अपनी कृपा
कि जैसे सबके दिन फिरे उनके भी फिरें
एक विकल्प से शुरू होती हर खोज उनकी
किसी संभावना से
आशा उसी तरह जैसी उसकी परम्परा है
फिर किसी मंज़िल तक पहुँचकर ठिठकती
समाप्त हो जाती अक्सर किसी निष्कर्ष पर
फिर भी ख़त्म नहीं होती ज़िम्मेदारियाँ
कि उलझा हुआ है स्थिर और चलित का समीकरण
अभी कटघरे में खड़ा है इतिहास
जिस पर अजीब से आरोप हैं
कि उसने चुराए हैं शास्त्रों से कुछ शब्द
कुछ मिथक छीन लिए हैं गाथाओं से
तथ्य उठा लाया वह मुँह अंधेरे
जब यह दुनिया अज्ञान का कंबल ओढ़े सो रही थी
शायद उसे फिर लिखे जाने की सज़ा मिले
सौंप दी जाए कलम फिर इतिहासकारों के हाथ में
भाषा लिपि और शिल्प जुगाड़ दे कम्प्यूटर
पुरातत्ववेताओं को तथ्य जुटाने का आदेश मिले
प्रश्न यह नहीं कि यह उनका कार्यक्षेत्र है या नहीं
और इस तरह इतिहास में सीधे सीधे हस्तक्षेप में
और सभ्यता और संस्कृति और परम्परा सब पर
अपने ढंग से कहने में
जोखिम है या नहीं
यह बात अलग है कि ख़तरे वहाँ भी हैं
जहाँ वे होते हुए भी नहीं दिखाई देते
और आँख मूँद लेने का अर्थ विश्वास नहीं
उन्हें पता है कि कठिन है सब कुछ
जैसे चकमक पत्थर से हथियार बनाने की कोशिश
या उफनती नदी के तट पर गाँव बसाने की कोशिश
मोह लोभ लालच की बारिश में
भय की सूखी ज़मीन पर चलने के आकर्षण में सुख है
सुनहरे भविष्य का विकल्प लिए खड़ी है आधुनिकता
वर्तमान व्यस्त है सौदेबाजी में भावनाओं की
बहुत मुश्किल है जीवन में गुमशुदा शब्दों की तलाश
एक लम्बी सूची है वर्जित प्रदेशों की
एक अदृश्य दीवार है इच्छा और उपलब्धि के बीच
और उसे खण्डहर बनकर अतीत में जाने में अभी देर है
हर तरफ अब होड़ का पर्याय है प्राचीनता
वस्तु उनमें भाव उनमें देवता और आदमी
हर नई तकनीक अगले दिन पड़ती पुरानी
रूढ़ियाँ फिर लौटतीं एक नये परिधान में
वहीं खेतों में एक लोहे का हँसिया
काटता प्रति घंटे घास के उन्नीस पूले
चकमक लगे आदिम हँसिये से फ़कत एक ज़्यादा
वाह ! विकास की क्या तेज़ रफ़्तार है
जाँच के लिए क्यू में लगी हैं शताब्दियाँ
प्रयोगशालाओं में इतनी भीड़ कि बस तौबा
परखने के औज़ार कुछ खास हाथों में
किसके भीतर क्या निकले किसको पता
माइक्रोस्कोप का लेंस अपने आप में कुछ नहीं
मायने इस बात के कि आँख उसपर किसकी टिकी है
(यहाँ पुरातत्ववेत्ता डॉ वाकणकर द्वारा बताये गए एक किस्से का ज़िक्र है।एक बार उन्होंने एक हंसिये की फ्रेम में चकमक पत्थर लगाकर आदिम मनुष्य के हंसिये की तरह एक पुराना हंसिया बनाया उसे एक मज़दूर को धान काटने के लिए दिया साथ ही एक आधुनिक लोहे का हंसिया एक अन्य मज़दूर को दिया। आदिम हंसिये वाले कृषक ने एक घंटे में धान की उन्नीस ढेरी काटीं और आधुनिक हंसिये वाले कृषक ने बीस, केवल एक का फर्क हुआ। )
काँच की प्लेट पर हैं समय के अवशेष
उनमें नज़र आती हैं कुदरत की बदमाशियाँ
आदमी और उसके बीच टूटे विश्वास में दरार
दक्षिण के महापाषाणों पर उच्चता के आघात
उपेक्षित सभ्यता की पीठ पर कोड़ों के निशान
दमित संस्कृति के नितम्बों पर जलाए जाने के दाग़
नंगी आँखों से साफसुथरा दिखाई देता है सच
उस पर भी झूठ का बदरंग असर है
इतिहास में सफाई से जोड़ा गया जो टुकड़ा है
ताज़्ज़ुब अपने मूल का हिस्सा नहीं है
(महापाषाण संस्कृति { मेगालिथ कल्चर } का उदय दक्षिण में पाषाण युग के बाद हुआl इनका उत्कर्ष काल पुरातत्ववेत्ताओं ने ईसापूर्व तीसरी शताब्दी से पहली शताब्दी ईस्वी तक बताया है lमहा पाषाण बड़े पत्थरों से निर्मित कब्रों या स्मारकों के सूचक है lइस संस्कृति की विशेष पहचान चट्टानों को काटकर गुफा बनाये जाने से सम्बन्धित है जिसके उदाहरण चेन्नई के निकट महाबली पुरम, अजंता एलोरा व कार्ले की गुफाओं में मिलते हैं l इस संस्कृति के प्रमुख देवता मुरुगन {कार्तिकेय} थे lमहा पाषाण संस्कृति के लोग कृषि सिंचाई व लोहे के प्रयोग से परिचित थे l इस आदिम संस्कृति पर धीरे धीरे उच्च वर्गों का अधिकार होता गया l)