अब मुझे वहाँ नहीं जाना था
पचास वर्ष बाद
चजुर्भज सिलावट का मकान पूछने
रास्ते कहीं-से-कहीं मिल गये थे
या जिन्हें मैं ही भूल गया था
कैसा मकान और कहाँ
मैंने कहा मैं सुदर्शनलाल जी का पुत्र हूँ
हमारे श्यामा घोड़ी थी
वहाँ मैं चलकर गया
जहाँ वह अब नहीं थी
कभी बँधती रही हो शायद
हमारे घर के पीछे अनार के पेड़ थे
खिड़कियों तक लाल फूल वाले
वहाँ कुण्ड था पीछे
स्फटिक की तरह चमकती सीढ़ियों वाला
दो बहनें
मैंने दूर से देखा था जिन्हें
लाल चूनर वाली-वे
वह अचरज से यह वृतान्त सुनता
मुझे देखता रहा
आप बहुत दिनों बाद आयें हो
शायद
हमारे रहते-रहते भी
शहर बदल जाते हैं इतने
कुछ बदलता हुआ नजर नहीं आता
जब हम इतनी जगह रूकते हों
पूछते हों अपने पुराने घर।