आया याद कुछ बरस
पहले का चेहरा
भरोसा, प्रेम
देखकर अपनी पुरानी कमीज़ को ।
रंग ठीक वही नहीं,
पर दिलाता याद
भरे-पूरे रंग की !
कितने दिन कौंध गए--
बंद पड़ी संदूक से
निकली
कमीज़ में !
आया याद कुछ बरस
पहले का चेहरा
भरोसा, प्रेम
देखकर अपनी पुरानी कमीज़ को ।
रंग ठीक वही नहीं,
पर दिलाता याद
भरे-पूरे रंग की !
कितने दिन कौंध गए--
बंद पड़ी संदूक से
निकली
कमीज़ में !