कभी कोई नर्म हथेली बनकर
तो कभी सूजे हुए फफोलों का दर्द
ज़िंदा रहती हैं यादें
कहीं नहीं जातीं
जमकर बैठ जाती हैं छाती में
पूरी रात दुखता है सीना
आँखें सूजकर पहाड़ हो जाती हैं
कभी कोई नर्म हथेली बनकर
तो कभी सूजे हुए फफोलों का दर्द
ज़िंदा रहती हैं यादें
कहीं नहीं जातीं
जमकर बैठ जाती हैं छाती में
पूरी रात दुखता है सीना
आँखें सूजकर पहाड़ हो जाती हैं