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पुरानी सदी की हूँ मैं इक कहानी / देवी नांगरानी

पुरानी सदी की हूँ मैं इक कहानी
नई सोच की हूँ नई तर्जुमानी

वो अल्हड़-सी दुल्हन लगे मेरी आशा
जो शोख़ी से अंगड़ाइयाँ ले जवानी

फरेबों की साज़िश से अब तक घिरी है
रिहा जाने कब हो सके ज़िन्दगानी

तमन्ना उड़ी ख़ाक बनकर है जब-जब
तड़प ने वहीं है सदा खाक छानी

घरौंदे वहाँ नफरतों के बनेंगे
शुरू ज़ुल्म की हो जहाँ भी कहानी

कुचल डालो चाहे, मुझे मार डालो
रुकेगी न मेरे कलम की रवानी

ये औरत की 'देवी' भी क्या दास्तां है
कभी है वो सीता, कभी वो भवानी