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पुरानी हो गयी / प्रेमलता त्रिपाठी

फिर वही होगी कहानी जो पुरानी हो गयी।
पीर उठती जो हृदय में वह जतानी हो गयी।

प्रीति जो तुमसे लगायी थी हमारीसाधना,
गीत सरगम से सजाया मैं दिवानी हो गयी।

आँधियों ने तोड़ डाले घर हमारे क्या बचा,
त्याग, तप, आदर्श बातें अब कहानी हो गयी।

धर्म में अंधे बनें हम डूबती नइया यहाँ,
रो रही है अस्मिता भी आज पानी हो गयी।

हम उजाले को डुबाकर यों अमावस में करें,
रात की छाया घनेरी-सी जवानी हो गयी।

खोल दी हमने किताबें आज करुणा प्रेम की,
छल प्रपंचों की कथा सुननी-सुनानी हो गयी।