आनन्द के लिए
शहर में रहते बीस साल हो गए
कई मित्र बने तो कई से बरसों-बरस मुलाक़ात नहीं हुई
गाँव में बचपन के कई मित्रों से बहुत दिनों पर होता है मिलना
एक दोस्त तो हाल में मिला पुरे तीस सालों बाद
हम एक दूसरे के चेहरों में खोजते रहे पुराने चेहरे
पर इस दौरान गुज़र चुके समय की छाप बाहर से ज़्यादा भीतर थी
कई दोस्तों के बारे में सोचते हुए लगता
हमीं बुरे फंसे हमारे दोस्त तो कितने मज़े में हैं
कई दोस्तों की परेशानियाँ देखकर हम एक ठण्डी आह भरते
कुछ दोस्तों के साथ हमने शतरंज की बाज़ियाँ बिछाई थीं
कुछ के साथ ताश के पत्ते फेंटे थे
भयावह बेरोज़गारी के दिनों में हमने कुछ दोस्तों के साथ शर्ट बदले थे
हमने एक दूसरे की प्रेमिकाओं के बारे में तमाम जानकारियाँ जुटाई थीं
बुरे दिनों में हम साथ-साथ थे
अच्छे दिनों में हम कहाँ थे हमें नहीं मालूम
कभी किसी वक़्त इनमें से किसी की याद आती
तो हम ढूँढ़ते पुरानी डायरियों में उनके नम्बर
मगर अक्सर उनसे बातें नहीं होती
इधर कुछ मित्रो को ढूँढ़ा हमने फ़ेसबुक पर
एक दूसरे को दिए व्हाट्स-एप नम्बर
हमने अपने बच्चों के बारे में बताया
प्रमोशन की चर्चा की, घर-मकान की तस्वीरें भेजीं
मगर शुरू-शुरू के उत्साह के बाद यह जोश भी ठण्डा पड़ गया
कितना तो बतियाने की इच्छा थी और कहाँ हम ख़ामोश थे
वक़्त ने इतनी चालाकियाँ हम सबको बक्शी थी
कि सब मगन थे अपने रोज़मर्रे में और दूर सफलता की कुण्डी
बारी-बारी से खटखटाते, गरियाने लगते सरकार को
नये ज़माने ने हमें दोस्तों की इतनी इनायत बक्शी
कि पुराने दोस्त अब वक़्त के तहख़ाने में पड़े मिलते हैं