पुल पार करते
उस नदी को देखा मैंने
एक भूली-बिसरी बरसाती नदी
दो-चार महीना, टलमल-टलमल, जल से
फिर छूँछ की छूँछ
कितनी बेरौनक लगती है नदियाँ
जब उनमें नहीं होता जल
उदास, उस पुल से पूछे कोई।
पुल पार करते
उस नदी को देखा मैंने
एक भूली-बिसरी बरसाती नदी
दो-चार महीना, टलमल-टलमल, जल से
फिर छूँछ की छूँछ
कितनी बेरौनक लगती है नदियाँ
जब उनमें नहीं होता जल
उदास, उस पुल से पूछे कोई।