पुष्प तुम कितन अच्छे हो !
काँटों में भी खिल उठते हो,
सबसे मुस्काकर मिलते हो।
कभी नही करते हो शिकायत,
आए चाहे लाख मुसीबत।
उपवन की हो शान,
सभी को महक लुटाते हो।
पुष्प तुम कितने अच्छे हो।
मंडप हो या कोई उत्सव,
तुम हो, सबकी शोभा बढ़ाते।
देवों के सिर पर चढ़कर भी,
अंहकार का भाव न लाते।
मातृभूमि पर तन अर्पित कर,
जीवन की चाह मिटाते हो।
पुष्प तुम कितने अच्छे हो।