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पुस्तकालय / रमेश तैलंग

पुस्तकालय में मिलीं हमको किताबें।

कुछ भरी थीं धूल में,
कुछ के कई पन्ने फटे थे।
और कुछ ऐसी थीं जिनके
हाल बिलकुल अटपटे थे।

एक के अंदर लिखा था-
‘नाम मेरा... पेज पर है।’
दूसरी में था लिखा-
‘पुस्तक निरी बकवास भर है।’

और कुछ ऐसी थीं जिनकी
शक्ल पर बारह बजे थे।
कुछ कलाकारों के रेखांकन
वहाँ उनमें सजे थे।

मूक थीं ये पुस्तकें सब
यातनाएँ सह रही थीं।
पर कहानी मनचले कुछ
पाठकों की कह रही थीं।