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पूछते ”कौन सी प्रबल प्रीति का हो प्रवाह दो बता प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'

पूछते ”कौन सी प्रबल प्रीति का हो प्रवाह दो बता प्रिये।
हो कौन अमोलक मणि अनन्य, आनन्द-उदधि-निर्गता प्रिये।
किस मधु-रजनी की स्वप्न-सृष्टि हो किस मरुथल की पयस्विनी।
किस उडुगण-खचित विशद नभ की हो विमल इन्दु की विभा घनी।
किस सरसिज-दल-गत मधु-पिपासु षट पद-मानस की चंचलता।
हो किस गांधर्व-व्याह-कानन की प्रेयसि अनुपम कल्पलता”।
पतिता को पूछे कौन, विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥113॥