प्रभु तुम्हरे दर-द्वार पर, मैं आई हूँ खाली हाथ,
पूजा-प्रसाद सब सामग्री, कैसे लाती अपने साथ।
झरने, झीलें, ताल, सरि, जल निज लोटे में चंद भरूँ,
भंडार भरे वारि का जो, ताके जल अभिषेक प्रबंध करूँ।
दीन-दुखी, अनाथ-अनाश्रय, जो है सबका बंधु तात,
जो सबका है भाल सजाए, तिलक करूँ क्या उसके माथ।
मानव कीटक पशु पक्षी, सबका जीवन जिससे कृत,
मेरा न उत्पाद कोई फिर, क्या चढ़ाऊँ क्षीर और घृत।
पेड़-पौधे हों झाड़ कँटीले, फूल-फल का कर निर्माण,
तेरा तुझको अर्पण करके, क्या माँगूँ जग का कल्याण।
मुझमें क्या मेरा तलाश कर, भक्त कहाऊँ कर समर्पित,
क्रोध अहम् मद लोभ घृणा, कर पाऊँ तेरे द्वार विसर्जित।