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पूजा / सत्यप्रकाश जोशी

सगळै दिन घर में ऐकली
म्हारै कामगर हाथ सूं
थारै तांइ एक मुगट बणायौ
काची केळ रै हरियल पानड़ा माथै
मूंघा मोती जड़िया
रेसम री आटी संवारी,
सोना रा मांडणा माड्यां,
माथै छबकाळी मोरपंख सजाई।

सगळै दिन घर में उमंगां भरती
थारी मुरली रै सोनलिया घूघरा पोया,
रूपल डोरां
चिरमी री माळा गूंथी।

म्हारा चतर खांमची हाथां सूं बणायोड़ा
मुगट, मुरली नै माळा
धारण करियोड़ा
थारा रूप नै
अंतस री आंख्या सूं
निरखण लागी।

पण सांझ पड़यां कुंज रै पड़वा में
थूं म्हारै तांई
हेमपुहप री बेणी
पोयणां पोयोड़ौ हार,
नै केवड़ै री काची कळियां रा भुजबंध
गूंथ लायौ
तौ म्हारी सगळी चतराई
मगसी पड़गी,
पांण उतरगी।

फूलां रा गै‘णां पै‘र
म्हैं जमना रै दरपण में
म्हारो रूप निहारयौ
तौ उण इदक रूप रा गुमेज में
थनै पुजापौ चढ़ाणौ बिसरगी।

थूं ई तौ दिन भर
ऐकलौ बैठ
उमंगा सूं
आंनै बणायो होसी।