पूजा के गीत नहीं बदले,
वरदान बदलकर क्या होगा ?
तरकश में तीर न हों तीखे, संधान बदलकर
क्या होगा ?
समता के शांत तपोवन में
अधिकारों का कोलाहल क्यों ?
लड़ने के निर्णय ज्यों के त्यों, मैदान बदलकर
क्या होगा ?
मानवता के मठ में जाकर
जो पशुता की पूजा करते,
प्रभुता के भूखे भक्तों का ईमान बदलकर
क्या होगा ?
पथ की दुविधाओं से डरकर
जो सुविधाओं की ओर चले,
ऐसे पथभ्रष्ट पंथियों का अभियान बदलकर
क्या होगा ?
यदि फूलों में मधु-गंध न हो
काँटों का चुभना बंद न हो,
चिड़ियों की चहक स्वच्छंद न हो उद्यान बदलकर
क्या होगा ?