Last modified on 9 मई 2011, at 12:24

पूजा के बाद / नरेश अग्रवाल

पूजा के बाद हमसे कहा गया
हम विसर्जित कर दें
जलते हुए दीयों को नदी के जल में
ऐसा ही किया हम सबने ।

सैकड़ों दीये बहते हुए जा रहे थे एक साथ
अलग-अलग कतार में ।

वे आगे बढ़ रहे थे
जैसे रात्रि के मुँह को थोड़ा-थोड़ा खोल रहे हों, प्रकाश से
इस तरह से मीलों की यात्रा तय की होगी इन्होंने
प्रत्येक किनारे को थोड़ी-थोड़ी रोशनी दी होगी
बुझने से पहले ।

इनके प्रस्थान के साथ-साथ
हम सबने आँखें मूंद ली थी
और इन सारे दीयों की रोशनी को
एक प्रकाश-पुंज की तरह महसूस किया था
हमने अपने भीतर ।