केरल के बैकवाटर
अप्रतिम मनोहर
पूरब का वेनिस एलेप्पी
लग रहा ईश्वर का घर
हाउसबोट पर बैठकर
करने चले एलेप्पी की सैर
शांत लहरों पर चली नौका
मंथर मंथर.....
तैर रहे बगुले से लिली के पुष्प
सद्यस्नाता सी स्निग्ध
हरी पत्तियों के गुच्छे
डुबकी लगाकर बार-बार
ऊपर आते
घने नारियल तरू
पक्षी चहचहाते
गूंज रहे बाँसुरी के स्वर
शिला पर शोभित कृष्ण मंदिर में
बढ़ी नौका अनजाने पथ पर
मन मोह लेते
चर्च से आते प्रार्थना के स्वर
तटों पर बने छोटे-छोटे से घर
बज रही कुकर की सीटी
भोजन बनने की सुगंध
लगी चाय की तलब
नाविक ने नौका रोकी
दोस्त के घर
चाय की चुस्कियों के साथ
देखा सहज सरल जीवन
घर के पिछवाड़े बोया है धान
कुछ सब्जियाँ
एलेप्पी के जल से ही
मिलती रोजी रोटी
ईगल को कंधे पर बिठाये
कर रहा सत्कार
डरो नही यह ईगल हमारा दोस्त है
कंधे पर बैठाया ईगल
हुई गुदगुदी
मन हुआ प्रमुदित
नौका पर बैठ
बढ़ चले लहरों पर
ऐसी अनजानी कल्पित
दुनिया की सैर पर
अद्भुत लोक में
जहाँ जल, जमीन, पहाड़ियाँ
धान की खुशबू
खुला आकाश
पंछियों की गूंज
मंदिरों के त्रिशूल
गिरजाघर के क्रास
मछलियों की जलक्रीड़ा
लहरों की कल-कल
सब एक साथ मौजूद
समस्त इंद्रियाँ हो गयीं तृप्त
होने लगा सूर्यास्त
एलेप्पी का जल हुआ स्वर्णिम
लहरों से अठखेलियाँ कर रहा पवन
सूरज उतर रहा एलेप्पी के अंक में
वह हुआ हमसे विदा
अनमोल यादों के साथ
फिर मिलेंगे
ऐलप्पी को कहा अलविदा।